अभयचन्द्रसूरि :
तात्पर्यवृत्ति-जैसे घटादि पदार्थ स्वभाव से ही ज्ञेय हैं न कि ज्ञान से उत्पन्न होने आदि की अपेक्षा से और वे अपने हेतु से मिट्टी आदि सामग्री से उत्पन्न होते हैं-बनते हैं, ऐसे अपने कारणों से उत्पन्न होते हुए भी वे घटादि ज्ञान के विषय हैं, वैसे ही ज्ञान भी स्वभाव से ही पदार्थ को ग्रहण करने के स्वभाव वाला है न कि अर्थ से उत्पन्न होने आदि की अपेक्षा से। वह ज्ञान कैसा है ? अपने हेतु से उत्पन्न होने वाला है, ज्ञान का अंतरंग हेतु आवरण के क्षयोपशमरूप है और बहिरंग हेतु इंद्रिय तथा मनरूप है, इन अंतरंग-बहिरंग हेतुओं से उत्पन्न होते हुए भी ज्ञान स्वभाव से ही वस्तु को जानने का कार्य करता है। अर्थ को ग्रहण करने रूप स्वभाव वाला ज्ञान किसी के द्वारा शक्ति के आवृत्त होने पर कुछ-कुछ पदार्थों को ही जानता है और प्रतिबंधक आवरण कर्म क्षयोपशम या क्षय विशेष होने पर तो वही ज्ञान अपने विषय विशेष को जान लेता है। |