
सूरि :
तात्पर्यवृत्ति-प्रमाणपने से स्वीकृत प्रमाणों की प्रमाणता-अविसंवादकता होती है। कैसे ? व्यवहार की अनुकूलता से अर्थात् संग्रह के विषय में भेद करने वाला व्यवहार है, उसकी अनुकूलता-अविसंवाद है उससे ही प्रमाणता है अन्यथा उसमें विसंवाद होने से प्रमाणता नहीं हो सकेगी। नहीं तो बाध्यमान-बाधित होने वाले संशय आदि विसंवादी ज्ञानों में भी प्रमाणता का प्रसंग आ जावेगा अर्थात प्रमाण आरै अप्रमाण की व्यवस्था का कारण होने से व्यवहारनय कहलाता है अन्यथा वह तदाभास कहलाता है, ऐसा अर्थ है। |