+ अब उक्त नयों के विशेषण और विशेष नय स्वरूप को प्रतिपादित करते हैं -
चत्त्वारोऽर्थनया ह्येते जीवाद्यर्थव्यपाश्रयात्॥
त्रय: शब्दनया: सत्यपदविद्यां समाश्रिता:॥22॥
अकलंकप्रभाभारद्योतितं श्रुतमर्थत:॥
प्रमानयोपयोगात्म सौरी वृत्ति: प्रबोधयेत्॥1॥
अन्वयार्थ : अन्वयार्थ-[ऐते ही चत्वार: अर्थनया:] निश्चितरूप से ये चार ही अर्थ नय हैं [जीवाद्यर्थव्यपाश्रयात्] क्योंकि जीवादि पदार्थों का आश्रय लेते हैं [त्रय: शब्दनया:] शेष तीन शब्दनय हैं, [सत्यपदविद्यां समाश्रिता:] क्योंकि ये व्याकरण शास्त्र का आश्रय लेने वाले हैं।।२२।।

  सूरि 

सूरि :

तात्पर्यवृत्ति-पहले कहे गये जो नैगम आदि नय हैं, उनमें से चार नय अर्थ प्रधान होने से अर्थनय कहलाते हैं क्योंकि ये जीवादि पदार्थों का आश्रय लेते हैं। शेष शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत ये तीन नय शब्द प्रधान होने से शब्दनय हैं। ये सत्यपद की विद्या के आश्रित हैं अर्थात् प्रमाणांतर से अबाधित, काल, कारक आदि भेद के वाची पद सत्यपद कहलाते हैं, उन सत्यपदों की विद्या-व्याकरण शास्त्र, उसको आश्रित करने वाले हैं वे व्याकरणशास्त्र के आश्रित हैं ऐसा अर्थ है। उनमें काल, कारक, लिंग आदि के भेद से अर्थ में भेद को करने वाला शब्दनय है। पर्यायवाची शब्दों के भेद से अर्थ में भेद को करने वाला समभिरूढ़नय है और क्रियावाची शब्द के भेद से अर्थ में भेद को करने वाला एवंभूत नय हैं।

भावार्थ-यहाँ पर सात नयों में से चार नयों का लक्षण तो कारिकाओं में कह ही दिया है अत: श्री अभयचंद्रसूरि ने शब्दादि तीन नयों का लक्षण संक्षेप से कह दिया है क्योंकि कारिका में भी श्री अकलंकदेव ने इन तीन नयों को सत्यपद की विद्यारूप शब्द शास्त्र के आश्रित कहा है।

श्लोकार्थ-अकलंक-निर्दोष प्रभा के भार से प्रकाशित श्रुत-आगम को जो कि अर्थ से प्रमाणनय और उपयोगस्वरूप है इसको सौरीवृत्ति-श्रीअभयचंद्रसूरि की वृत्ति प्रबोधित करती है।।१।।

भावार्थ-श्रीमान् भट्टाकलंकदेव ने कारिकाओं के द्वारा जिनके स्वरूप को कहा है और श्री प्रभाचंद्राचार्य ने न्यायकुमुद टीका के द्वारा उनका विशद विवेचन किया है पुन: उन दोनों के अभिप्राय को ज्ञातकर श्री अभयचंद्रसूरि ने संक्षेप से सारभूत इस आगम के परिच्छेद में प्रमाण, नय तथा उपयोग के स्वरूप का स्पष्टीकरण किया है, ऐसा अर्थ है।

इस प्रकार श्री अभयचंद्रसूरि कृत लघीयस्त्रय की स्याद्वादभूषण नामक तात्पर्यवृत्ति में श्रुतोपयोग नाम का छठा परिच्छेद पूर्ण हुआ।