मुख्तार :
लक्षण, शक्ति, धर्म, स्वभाव, गुण और विशेष ये सब एक 'गुण रूप' अर्थ के वाचक हैं । व्यतिकीर्ण - वस्तुव्यावृत्तिहेतुर्लक्षणम् ॥न्या.दी./१/३/५/९॥
अर्थ – मिली हुई अनेक वस्तुओं में से किसी एक वस्तु को पृथक् करने वाले हेतु को लक्षण कहते हैं ।परस्परव्यतिकरे सति येनान्यत्वं लक्ष्यते तल्लक्षणम् ॥रा.वा./२/८/२/११९/६॥
अर्थ – परस्पर सम्मिलित वस्तुओं से जिसके द्वारा किसी वस्तु का पृथक्करण हो वह उसका लक्षण होता है ।किं लक्खणं । जस्साभावे दव्वस्साभावो होदि तं तस्स लक्खणं, जहा पोग्गलदव्वस्स रूव-रस-गंध-फासा, जीवस्स उवजोगो ॥ध./७/२,१,५५/९६/३॥
जिसके अभाव में द्रव्य का भी अभाव हो जाता है, वही उस द्रव्य का लक्षण है। जैसे - पुद्गल द्रव्य का लक्षण रूप, रस, गन्ध और; जीव का उपयोग ।
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