मुख्तार :
दव्वाणं सहभूदा सामण्णविसेसदो गुणा णेया ।
जो द्रव्य के सहभावी हों उन्हें गुण कहते हैं । वे गुण दो प्रकार के हैं -- सर्व द्रव्यों में पाए जाने वाले सामान्य गुण दस और विशेष गुण सोलह होते हैं । अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुरूलघुत्व, प्रदेशत्व, चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्तत्व और अमूर्तत्व ये दस सामान्य गुण जानने चाहिये ।सव्वेसिं सामण्णा दह भणिया सोलस विसेसा ॥११॥ अत्थित्तं वत्थुत्तं दव्वत्त पमेयत्त अगुरूलहुगुत्तं । देसत्त चेदणिदरं मुत्तममुत्तं वियाणेह ॥प्रा.न.च.१२॥ एक द्रव्य को दूसरे द्रव्य से पृथक् करे, उसे गुण कहते हैं । (सूत्र ९२-९६) यद्यपि ग्रन्थकार स्वयं इन गुणों का स्वरूप आगे सूत्र ९४-१०४ कहेंगे तथापि पाठकों की सुविधा के लिये उनका स्वरूप यहां पर भी दिया जाता है ।
ये गुण एक से अधिक द्रव्यों में पाये जाते है इसलिये ये सामान्य गुण है । चेतनत्व भी सर्व जीवों में पाया जाता है इसलिये सामान्य गुण है । मूर्तत्व भी सर्व पुद्गलों में पाया जाता है इसलिये सामान्य गुण है । जीव के अतिरिक्त अन्य पांच द्रव्य अचेतन है और जीव, धर्म, अघर्म, आकाश और काल द्रव्य अमूर्तिक हैं, इसलिये अचेतनत्व और अमूर्तत्व भी सामान्य (साधारण) गुण हैं । प्रश्न – चेतनत्व और मूर्तत्व सामान्य गुण कैसे हैं ? उत्तर – जीव और पुद्गल यदि एक एक होते तो शंका ठीक थी । किन्तु जीव भी अनन्त हैं और पुद्गल भी अनन्त हैं । अतः स्वजाति की अपेक्षा चेतनत्व व मूर्तत्व सामान्य गुण हैं । |