+ जीव की विभाव गुण व्यंजन पर्याय -
विभावगुणव्यंजनपर्याया मत्यादय: ॥20॥
अन्वयार्थ : मतिज्ञान आदिक जीव की विभाव-गुण-व्‍यंजन-पर्यायें हैं ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

स्‍थूल, वचनगोचर, नाशवान और स्थिर पर्यायें व्‍यंजन-पर्यायें हैं । सूक्ष्‍म और प्रतिक्षण नाश होने वाली पर्यायें अर्थ-पर्यायें हैं । कुमति, कुश्रुत, कुअवधि, मति, श्रुत, अवधि और मन:पर्यय -- ये सात ज्ञान; चक्षु, अचक्षु और अवधि -- ये तीन दर्शन; ये सब जीव की विभाव-गुण-व्‍यंजनपर्यायें हैं ।
  • इन सातों उपयोगों का जघन्‍य काल भी अन्‍तर्मुहूर्त है, अत: ये व्‍यंजन-पर्यायें है ।
  • ये सातों उपयोग आवरणकर्म के क्षयोपशम के अधीन हैं अत: ये विभाव-पर्यायें हैं ।
  • ज्ञानगुण तथा दर्शनगुण की क्षायोपशमिक पर्यायें हैं, अत: गुण पर्यायें हैं ।
इस प्रकार मतिज्ञान आदिक जीव की विभाव-गुण-व्‍यंजन पर्यायें हैं ।