+ जीव की स्‍वभाव-द्रव्‍य-व्‍यंजनपर्याय -
स्‍वभावद्रव्‍यव्‍यंजनपर्यायाश्‍चरमशरीरात् किंचिन्‍न्‍यूनसिद्ध-पर्याया: ॥21॥
अन्वयार्थ : अन्तिम शरीर से कुछ कम जो सिद्ध पर्याय है, वह जीव की स्‍वभाव-द्रव्‍य-व्‍यंजनपर्याय है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

तिलोयपण्‍णति अधिकार ९ के सूत्र ९ व १० में सिद्धों की अवगाहना का कथन है । इन दो आयामों द्वारा दो भिन्‍न मतों का उल्‍लेख किया गया है । इनमें से गाथा १० टिप्‍पण में उद्धृत्त की गई है जिसका अर्थ है - 'अन्तिम भव में जिसका जैसा आकार, दीर्घता और बाहुल्‍य हो उससे तृतीय भाग से कम सब सिद्धों की अवगाहना होती है ।' अर्थात् पूर्व जन्‍म में शरीर की जितनी लम्‍बाई-चौड़ाई होती है उसके तीसरे भाग से न्‍यून सिद्ध-पर्याय की अवगाहना होती है । किन्‍तु गाथा ९ में कहा है -- लोक विनिश्‍चय ग्रन्‍थ में लोक विभाग में सब सिद्धों की अवगाहना का प्रमाण कुछ कम चरम-शरीर के समान कहा है । इसका दृष्‍टान्त इस प्रकार है -- मोम रहित मूसा के (सांचे के) बीच के आकार की तरह अन्तिम शरीर से कुछ कम आकार वाले केवलज्ञानमूर्ति अमूर्तिक सिद्ध-भगवान विराजते हैं । यह सिद्ध-पर्याय जीव की शुद्ध-पर्याय है इसलिए स्‍वभाव-पर्याय है । किसी विवक्षित गुण की पर्याय नहीं है इसलिए द्रव्‍य-पर्याय है । सिद्ध पर्याय सादि-अनन्‍त पर्याय है इसलिए व्‍यंजन-पर्याय है । सिद्ध पर्याय की अवगाहना अन्तिम शरीर से कुछ न्‍यून है ।