मुख्तार :
तिलोयपण्णति अधिकार ९ के सूत्र ९ व १० में सिद्धों की अवगाहना का कथन है । इन दो आयामों द्वारा दो भिन्न मतों का उल्लेख किया गया है । इनमें से गाथा १० टिप्पण में उद्धृत्त की गई है जिसका अर्थ है - 'अन्तिम भव में जिसका जैसा आकार, दीर्घता और बाहुल्य हो उससे तृतीय भाग से कम सब सिद्धों की अवगाहना होती है ।' अर्थात् पूर्व जन्म में शरीर की जितनी लम्बाई-चौड़ाई होती है उसके तीसरे भाग से न्यून सिद्ध-पर्याय की अवगाहना होती है । किन्तु गाथा ९ में कहा है -- लोक विनिश्चय ग्रन्थ में लोक विभाग में सब सिद्धों की अवगाहना का प्रमाण कुछ कम चरम-शरीर के समान कहा है । इसका दृष्टान्त इस प्रकार है -- मोम रहित मूसा के (सांचे के) बीच के आकार की तरह अन्तिम शरीर से कुछ कम आकार वाले केवलज्ञानमूर्ति अमूर्तिक सिद्ध-भगवान विराजते हैं । यह सिद्ध-पर्याय जीव की शुद्ध-पर्याय है इसलिए स्वभाव-पर्याय है । किसी विवक्षित गुण की पर्याय नहीं है इसलिए द्रव्य-पर्याय है । सिद्ध पर्याय सादि-अनन्त पर्याय है इसलिए व्यंजन-पर्याय है । सिद्ध पर्याय की अवगाहना अन्तिम शरीर से कुछ न्यून है । |