+ पुद्गल की विभाव-द्रव्‍य-व्‍यंजन-पर्याय -
पुद्गलस्‍य तु द्वयणुकादयो विभावद्रव्‍यव्‍यंजनपर्याया: ॥23॥
अन्वयार्थ : द्वि-अणुक आदि स्‍कंध पुद्गल की विभाव-द्रव्‍य-व्यंजन-पर्याय है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

यहाँ पर 'तु' शब्‍द का अर्थ 'और' है । ओर पुद्गल की विभाव-द्रव्‍य-व्‍यंजन पर्यायें द्वि-अणुक आदि स्‍कंध हैं । शब्‍द, बन्‍ध, सूक्ष्‍मता, स्‍थूलता, संस्‍थान, भेद, तम, छाया, आतप, उद्योत आदि भी पुद्गल की विभाव-द्रव्‍य-व्‍यंजन पर्यायें हैं । कहा भी है --

सद्दो बंधो सुहमो, थूलो संठाणभेदतमछाया ।
उज्जोदादवसहिया, पुग्गल दव्वस्स पज्जाया ॥वृ.द्र.सं.१६॥
अर्थ – शब्‍द, बन्‍ध, सूक्ष्‍म, स्‍थूल, संस्‍थान, भेद, तम (अंधकार), छाया, उद्योत और आतप ये सब पुद्गल द्रव्‍य की पर्यायें हैं ।

शब्‍दादन्‍येऽपि आगमोक्‍तलक्षणा आकुञ्चनप्रसारणदधिदुग्‍धादयो विभावव्‍यंजनपर्याया ज्ञातव्‍या ॥वृ.द्र.सं.१६.टी.॥
अर्थ – शब्‍द आदि के अतिरिक्‍त शास्‍त्रोक्‍त अन्‍य भी, जैसे सिकुड़ना, फैलना, दही, दूध आदि विभाव-द्रव्‍य-व्‍यंजनपर्यायें जाननी चाहियें ।