+ काल-द्रव्‍य में स्‍वभावों की संख्‍या -
तत्र बहुप्रदेशत्‍वंविना कालस्‍य पंचदश स्‍वभावा: ॥31॥
अन्वयार्थ : उन सोलह स्‍वभावों में से बहुप्रदेश-स्‍वभाव के बिना शेष पन्‍द्रह स्‍वभाव काल-द्रव्‍य में पाये जाते है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश ये पांच द्रव्‍य बहुप्रदेशी हैं, इसीलिये इनको पंचास्तिकाय कहा गया है, किन्‍तु काल-द्रव्‍य अर्थात् कालाणु एकप्रदेशी है, इसलिये उसको बहुप्रदेशी अर्थात् कायवान् नहीं कहा गया है ।

अजीवकाय धर्माधर्माकाशपुद्गला: ॥त.सू.५/२॥
अर्थ – धर्म-द्रव्‍य, अधर्म-द्रव्‍य, आकाश-द्रव्‍य पुद्गल-द्रव्‍य ये चारों अजीव भी है और कायवान भी हैं ।

जीव पुद्गल, धर्म-द्रव्‍य, अधर्म-द्रव्‍य, आकाश-द्रव्‍य यद्यपि बहुप्रदेशी हैं तथापि अखण्‍ड की अपेक्षा से इनमें एकप्रदेशी-स्‍वभाव भी है ।

यद्यपि पुद्गल परमाणु भी एकप्रदेशी है तथापि स्निग्‍ध-रूक्ष गुण के कारण वह पुद्गल परमाणु बंध को प्राप्‍त होने पर बहुप्रदेशी हो जाता है, इसलिये पुद्गल परमाणु उपचार से बहुप्रदेशी है । कहा भी है --
एयपदेसो वि अणू णाणाखंघप्‍पदेसदो होदि ।
बहुदेसो उवयारा तेण य काओ भणंति सव्‍वण्‍हु ॥द.सं.-२६॥
अर्थ – एकप्रदेशी भी परमाणु अनेक स्‍कंधरूप बहुप्रदेशी हो सकता है । इस कारण सर्वज्ञदेव उपचार से पुद्गल परमाणु को काय (बहुप्रदेशी) कहते हैं ।

स्निग्‍ध रूक्ष गुण न होने के कारण कालाणु बंध को प्राप्‍त नहीं हो सकता, इसलिये उपचार से भी बहुप्रदेशी नहीं है ।

एकविंशतिभावाः स्‍युर्जीवपुद्गलयोर्मताः ।
धर्मादीनां षोडश स्‍युः काले पंचदश स्‍मृताः ॥३॥
अर्थ – जीव और पुद्गल द्रव्‍यों में इक्‍कीस, धर्म, अधर्म और आकाश इन तीन द्रव्‍यों में सोलह तथा काल द्रव्‍य में पन्‍द्रह स्‍वभाव जानना चाहिये ।



॥ इति स्‍वाभावाविकार ॥