मुख्तार :
'आत्मन उपसमीपे प्रमाणदीनां वा तेषामुपसमीपे नयतीत्युपनयः ।' (संस्कृत न.च./४५) अर्थात् जो आत्मा के या उन प्रमाणादिकों के अत्यन्त निकट पहुंचाता है वह उपनय है । यह उपनय भी वस्तु के यथार्थ धर्म का कथन करता है, अयथार्थ धर्म का कथन नहीं करता, इसलिये इसके द्वारा भी वस्तु का यथार्थ बोध होता है । उपनय के भेदों का कथन करने के लिये आगे का सूत्र कहा जाता है -- |