+ उपनय के भेद -
सद्भूतव्‍यवहारः असद्भूतव्‍यवहारः उपचरितासद्भूतव्‍यवहारश्‍चेत्‍युपनयास्‍त्रेधा ॥44॥
अन्वयार्थ : सद्भूत-व्‍यवहार, असद्भूतव्‍यवहार और उपचरित-असद्भूत-व्‍यवहार ऐसे उपनय के तीन भेद होते हैं ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

'भेदोपचारतया वस्‍तु व्‍यवहियत इति व्‍यवहारः ।' द्वन्‍द्व-समास की अपेक्षा इस सूत्र का अर्थ होता है -- भेद और उपचार के द्वारा जो वस्‍तु का व्‍यवहार होता है वह व्‍यवहार नय है । जो भेद के द्वारा वस्‍तु का व्‍यवहार करे वह सद्भूत-व्‍यवहार-नय है और जो उपचार के द्वारा वस्‍तु का व्‍यवहार करे वह असद्भूत-व्‍यवहार-नय है ।

संज्ञा, संख्‍या, लक्षण, प्रयोजन की अपेक्षा गुण और गुणी में भेद करने वाली नय सद्भूत-व्‍यवहार नय है । इसी प्रकार पर्याय-पर्यायी में, स्‍वभाव-स्‍वभावी में, कारक-कारकी में भी भेद करना सद्भूत-व्‍यवहार-नय है । जैसे -- उष्‍ण स्‍वभाव और अग्नि स्‍वभावी में भेद करना तथा मृतपिंड की शक्ति-विशेष कारक में और मृतपिंड कारकी में भेद करना । ये सब सद्भूत-व्‍यवहार-नय के दृष्‍टान्‍त हैं ।

अन्‍यत्र प्रसिद्ध धर्म (स्‍वभाव) का अन्‍यत्र समारोप करने वाली असद्भूत-व्‍यवहार नय है । जैसे पुद्गल आदि में जो धर्म (स्‍वभाव) है उसका जीवादि में समारोप करना । इसके नौ भेद हैं
  1. द्रव्‍य में द्रव्‍य का उपचार,
  2. पर्याय में पर्याय का उपचार,
  3. गुण में गुण का उपचार,
  4. द्रव्‍य में गुण का उपचार,
  5. द्रव्‍य में पर्याय का उपचार,
  6. गुण में द्रव्‍य का उपचार,
  7. गुण में पर्याय का उपचार,
  8. पर्याय में द्रव्‍य का उपचार,
  9. पर्याय में गुण का उपचार ।
यह नौ प्रकार का उपचार असद्भूत-व्‍यवहारनय का विषय है । जैसे --
  1. पुद्गल में जीव का उपचार अर्थात् पृथ्‍वी आदि पुद्गल में एकेन्द्रिय जीव का उपचार ।
  2. दर्पणरूप पर्याय में अन्‍य पर्यायरूप प्रतिबिंब का उपचार । किसी के प्रतिबिंब को देखकर जिसका वह प्रतिबिंब है उसको उस प्रतिबिंबरूप बतलाना ।
  3. मतिज्ञान मूर्त है -- यहाँ विजाति ज्ञानगुण में विजाति मूर्तगुण का आरोपण है ।
  4. जीव-अजीव ज्ञेय अर्थात् ज्ञान के विषयक हैं । यहां जीव-अजीव द्रव्‍य में ज्ञानगुण का उपचार है ।
  5. परमाणु बहुप्रदेशी है अर्थात् परमाणु पुद्गल-द्रव्‍य में बहुप्रदेशी पर्याय का उपचार है ।
  6. श्‍वेत प्रसाद । यहाँ पर श्‍वेत गुण में प्रसाद द्रव्‍य का आरोप किया गया है ।
  7. ज्ञानगुण के परिणमन में ज्ञान-पर्याय का ग्रहण, गुण में पर्याय का आरोपण है ।
  8. स्‍कंध को पुद्गल द्रव्‍य कहना, पर्याय में द्रव्‍य का उपचार हे ।
  9. इसका शरीर रूपवान है । यहाँ पर शरीर रूप पर्याय में 'रूपवान' गुण का उपचार किया गया है।


उपचरित-असद्भूत-व्‍यवहारनय

मुख्‍य में अभाव में प्रयोजनवश या निमित्तवश जो उपचार होता है वह उपचरित-असद्भूत-व्‍यवहारनय है । जैसे मार्जार (बिलाव) को सिंह कहना । यहाँ पर मार्जार और सिंह में में साद्दश्‍य सम्‍बन्‍ध के कारण मार्जार में सिंह का उपचार किया गया है, क्‍योंकि सम्बन्ध के बिना उपचार नहीं हो सकता । जैसे चूहे आदि में सिंह का उपचार नहीं किया जा सकता । वह सम्बन्ध अनेक प्रकार का है । जैसे -- अविनाभाव सम्बन्ध, संश्‍लेष सम्बन्ध, परिणाम-परिणामी सम्बन्ध, श्रद्धा-श्रद्धेय सम्बन्ध, ज्ञान-ज्ञेय सम्बन्ध, चारित्र-चर्या सम्बन्ध इत्‍यादि । ये सब उपचरित-असद्भूत-व्‍यवहारनय के विषय हैं । 'तत्त्वार्थ का श्रद्धान सम्‍यग्‍दर्शन है' यह उपचरित-असद्भूत-व्‍यवहारनय का विषय है, क्‍योंकि यहाँ पर श्रद्धा-श्रद्धेय सम्बन्ध पाया जाता है ।'सर्वज्ञ' यह भी उपचरित-असद्भूत-व्‍यवहारनय का विषय है, ज्ञेय-ज्ञायक सम्बन्ध पाया जाता है, सर्व जो ज्ञेय उनका ज्ञायक सर्वज्ञ होता है । इत्‍यादि