मुख्तार :
प्राकृत नयचक्र में कहा भी है -- कम्माणं मज्झगयं जीवं जो गहइ सिद्ध संकासं ।
अर्थ – कर्मों के बीच में पड़े हुए जीव को सिद्ध समान ग्रहण करने वाला नय कर्मोपाधि-निरपेक्ष शुद्ध-नय है ।
भण्णइ सो सुद्धणओ खलु कम्मोवाहिणिरवेक्खो ॥प्रा.न.च.१८॥ |