+ कर्मोपाधिनिरपेक्ष शुद्ध-द्रव्‍यार्थिकनय -
कर्मोपाधिनिरपेक्षः शुद्धद्रव्‍यार्थिकः यथा संसारीजीवः सिद्धसदृक्शुद्धात्‍मा ॥47॥
अन्वयार्थ : शुद्ध द्रव्‍यार्थिक नय का विषय कर्मोपाधि की अपेक्षा रहित जीव-द्रव्‍य है, जैसे -- संसारी जीव सिद्ध समान शुद्धात्‍मा है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

प्राकृत नयचक्र में कहा भी है --

कम्‍माणं मज्‍झगयं जीवं जो गहइ सिद्ध संकासं ।
भण्‍णइ सो सुद्धणओ खलु कम्‍मोवाहिणिरवेक्‍खो ॥प्रा.न.च.१८॥
अर्थ – कर्मों के बीच में पड़े हुए जीव को सिद्ध समान ग्रहण करने वाला नय कर्मोपाधि-निरपेक्ष शुद्ध-नय है ।