मुख्तार :
यद्यपि संज्ञा, संख्या, लक्षण और प्रयोजन की अपेक्षा गुण और द्रव्य में, पर्याय और द्रव्य में तथा स्वभाव और द्रव्य में भेद है किन्तु प्रदेश की अपेक्षा गुण-द्रव्य में, पर्याय-द्रव्य में, स्वभाव-द्रव्य में भेद नहीं है अर्थात् अनेकान्त रूप से द्रव्य भेद-अभेद-आत्मक है । शुद्ध द्रव्यार्थिक नय का विषय भेद नहीं है, मात्र सफेद है । भेद विवक्षा को गौण करके शुद्ध-द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा गुण-पर्याय-स्वभाव का द्रव्य से अभेद है, क्योंकि प्रदेश भेद नहीं है । गुणगुणियाइचउक्के अत्थे जो णो करेइ खलु भेयं ।
अर्थ – गुण, गुणी आदि चार अर्थो (गुण, पर्याय, स्वभाव, द्रव्य) में भेद नहीं करने वाले नय को भेद-विकल्प-निरपेक्ष शुद्ध-द्रव्यार्थिक नय कहा गया है ।सुद्धो सो दव्वत्थो भेदवियप्पेण णिरवेक्खो ॥न.च.२०॥ तीन सूत्रों में अशुद्ध-द्रव्यार्थिक नय के तीन भेदों का कल्प -- |