+ नित्‍य-शुद्ध पर्यायार्थिक-नय -
कर्मोपाधिनिरपेक्षस्‍वभावोनित्‍यशुद्धपर्यायार्थिको यथा सिद्धपर्यायासद्दशा: शुद्धा: संसारिणां पर्याया: ॥62॥
अन्वयार्थ : कर्मोपाधि (औदयिक-भाव) से निरपेक्ष ग्रहण करने वाला नय नित्‍य-शुद्ध-पर्यायार्थिक नय है । जैसे -- संसारी जीवों की पर्याय सिद्ध समान शुद्ध है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

संस्‍कृत नयचक्र में इस नय का स्‍वरूप निम्‍न प्रकार कहा है --

विभावनित्‍यशुद्धोअयं पर्यायार्थी भवेवलं ।
संसारिजीवनिकायेषु सिद्धसाद्दश्‍यपर्यय: ॥सं.न.च.५/१०॥
पर्यायानंगिनां शुद्धात् सिद्धानाभिव यो वदेत् ।
स्‍वभावनित्‍यशुद्धोसौ पर्यायग्राहको नय: ॥सं.न.च.११/४२॥
चराचरपर्यायपरिणत समस्‍तसंसारीजीवनिकायेषु शुद्धसिद्धपर्याय-विवक्षाभावेन कर्मोपधिनिरपेक्षस्‍वभावननित्‍यशुद्धपर्यायार्थिक नय: ॥५॥
अर्थ – चराचर पर्याय परिणत संसारी जीवधारियों के समूह में शुद्ध सिद्ध-पर्याय की विवक्षा से कर्मोपाधि से निरपेक्ष स्‍वभाव नित्‍य-शुद्ध-पर्यायार्थिक नय है । यहाँ पर संसाररूप विभाव में यह नय नित्‍य-शुद्ध-पर्याय को जानने की विवक्षा रखता है।

प्राकृत नयचक्र में इस नय को अनित्‍य-शुद्ध-पर्यायार्थिक नय कहा है-

देहीणं पज्‍जाया सुद्धा सिद्धाण भणइ सारित्‍था ।
जो सो अणिच्‍चसुद्धो पज्‍जयणही इवे सो णओ ॥२०४॥
अर्थ – संसारी जीवों की पर्यायों को जो नय सिद्ध-समान शुद्ध कहता है वह अनित्‍यशुद्धपर्यायार्थिक नय है ।