मुख्तार :
संस्कृत नयचक्र में इस नय का स्वरूप निम्न प्रकार कहा है -- विभावनित्यशुद्धोअयं पर्यायार्थी भवेवलं ।
अर्थ – चराचर पर्याय परिणत संसारी जीवधारियों के समूह में शुद्ध सिद्ध-पर्याय की विवक्षा से कर्मोपाधि से निरपेक्ष स्वभाव नित्य-शुद्ध-पर्यायार्थिक नय है । यहाँ पर संसाररूप विभाव में यह नय नित्य-शुद्ध-पर्याय को जानने की विवक्षा रखता है।संसारिजीवनिकायेषु सिद्धसाद्दश्यपर्यय: ॥सं.न.च.५/१०॥ पर्यायानंगिनां शुद्धात् सिद्धानाभिव यो वदेत् । स्वभावनित्यशुद्धोसौ पर्यायग्राहको नय: ॥सं.न.च.११/४२॥ चराचरपर्यायपरिणत समस्तसंसारीजीवनिकायेषु शुद्धसिद्धपर्याय-विवक्षाभावेन कर्मोपधिनिरपेक्षस्वभावननित्यशुद्धपर्यायार्थिक नय: ॥५॥ प्राकृत नयचक्र में इस नय को अनित्य-शुद्ध-पर्यायार्थिक नय कहा है- देहीणं पज्जाया सुद्धा सिद्धाण भणइ सारित्था ।
अर्थ – संसारी जीवों की पर्यायों को जो नय सिद्ध-समान शुद्ध कहता है वह अनित्यशुद्धपर्यायार्थिक नय है ।
जो सो अणिच्चसुद्धो पज्जयणही इवे सो णओ ॥२०४॥ |