+ सामान्‍य संग्रहनय -
सामान्‍यसंग्रहो यथा सर्वाणि द्रव्‍याणि परस्‍परमविरोधीनि ॥69॥
अन्वयार्थ : सामान्‍य संग्रह नय, जैसे -- सर्व द्रव्‍य परस्‍पर अविरोधी हैं ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

सर्व द्रव्‍य सामान्‍य से सत् रूप हैं, क्‍योंकि 'सत्' द्रव्‍य का लक्षण है । इसीलिए सर्व द्रव्‍य परस्‍पर में अविरोधी हैं । 'सत्' कहने से जीव अजीव सभी द्रव्‍यों का ग्रहण हो जाता है अत: यह सामान्‍य संग्रह नय का विषय है । प्राकृत नयचक्र में कहा भी है --

अवरे परमविरोहे सव्‍वं अस्थित्ति सुद्धसंगहणो ॥ (प्रा.न.च./८)

अर्थ – सर्व द्रव्‍यों में परस्‍पर अविरोध है क्‍योंकि सत् रूप हैं - यह शुद्ध-संग्रह अथवा सामान्‍य-संग्रह नय है ।

संस्‍कृत नयचक्र में भी कहा है --

परस्‍परविरोधेन समस्‍तपदार्थसंग्रहैकवचनप्रयोगचातुर्येण कथ्‍यमानं सर्व सदित्‍येतत् सेनावनंनगरमित्‍येतत् प्रभृत्‍यनेकजाति निचयमेकवचनेन स्‍वीकृत्‍य कथनंसामान्‍यसंग्रहनय:। (सं.न.च./१३)

अर्थ – परस्‍पर अविरोध रूप से सम्‍पूर्ण पदार्थों के संग्रहरूप एकवचन के प्रयोग के चातुर्य से कहा जाने वाला सब सत् स्‍वरूप है। इस प्रकार से सेना-समूह, वन, नगर आदि अनेक जाति के समूह को एकवचन रूप से स्‍वीकार करके कथन करना सामान्‍य संग्रह नय है ।