मुख्तार :
संस्कृत नयचक्र में कहा भी है -- य: संग्रहग्रहीतार्थे शुद्धाशुद्धे विभेदक: ।
अर्थ – शुद्ध (सामान्य) संग्रह नय द्वारा ग्रहीत अर्थ की भेदक तथा अशुद्ध (विशेष) संग्रह नय द्वारा ग्रहीत अर्थ की भेदक व्यवहार नय भी शुद्ध, अशुद्ध (सामान्य / विशेष) के भेद से दो प्रकार का है ।शुद्धाशुद्धाभिधानेन व्यवहारो द्विधा मत: ॥सं.न.च.१७/४२॥ सामान्य व्यवहार नय का स्वरूप -- |