+ व्‍यवहारनय के प्रकार -
व्‍यवहारोऽपि द्वेधा ॥71॥
अन्वयार्थ : व्‍यवहारनय भी दो प्रकार का है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

संस्‍कृत नयचक्र में कहा भी है --

य: संग्रहग्रहीतार्थे शुद्धाशुद्धे विभेदक: ।
शुद्धाशुद्धाभिधानेन व्‍यवहारो द्विधा मत: ॥सं.न.च.१७/४२॥
अर्थ – शुद्ध (सामान्‍य) संग्रह नय द्वारा ग्रहीत अर्थ की भेदक तथा अशुद्ध (विशेष) संग्रह नय द्वारा ग्रहीत अर्थ की भेदक व्‍यवहार नय भी शुद्ध, अशुद्ध (सामान्‍य / विशेष) के भेद से दो प्रकार का है ।

सामान्‍य व्‍यवहार नय का स्‍वरूप --