मुख्तार :
संस्कृत नयचक्र में इस नय का स्वरूप इस प्रकार कहा है -- विशेषसंग्रहस्यार्थे जीवादौ रूपभेदत: ।
विशेषसंग्रहनयेन स्वीकृतार्थान् जीवपुद्गलनिचयान् भित्वा देव-नारकादिकथनं घटपटादिकथनं, इस्त्यश्र्वरथपदातीन् भित्वा भिनत्ति व्यवहारस्त्वशुद्धसंग्रह भेदक: ॥सं.न.च.२/१५॥ भद्रगज-जात्यश्र्व-महारथ-शतभट-सहस्त्रभटादिकथनं, निंबजंबुजंबीरनारंग-नालिकेरसहकारपादपनिचयं भित्वा सरसविरसता मधुराम्रादिरस’ विशेषतां परिमलतां हरितपाण्डुरादिवर्णविशेषतां ह्रस्वदीर्घतां सफल-नि:फलतामित्यादि कथनं, तलवाशष्टाद्शश्रेणीनिचयं भित्वां वलावलतां सस्वनिस्वतां कुशलाकुशलतां योग्यायोग्यतां कुब्जदीर्घतां कुरूपसुरूपतां स्त्रीपुं नपुं सकभेदविशेषतां कर्मविभागतां सद्सदाचरणतां च कथनमित्याद्यनेकविषयान् भित्वा कथनं विशेषसंग्रहभेद- कव्यवहारनयो भवति ।
अर्थ – जो विशेष संग्राहक नय के विषयभूत जीवादि पदार्थ को रूपभेद से (स्वरूपभेद से) विभाजित करता है वह अशुद्ध संग्रह (विशेषसंग्रह) भेदक व्यवहार नय है । विशेष संग्रहनय के द्वारा स्वीकृत पदार्थों को जीव-पुद्गलों के समूह को भेद करके देव-नारकादिक और घट-वस्त्राटिक का कथन करना; हस्ति, घोड़े, रथ, प्यादों को भेदरूप से विकल्प करके भद्र हाथी, सुन्दर घोड़ा, महारथ, शतभट, सहस्त्रभट आदि रूप से कहना; निंबु, जामुन, जंवीर, नारंगी, नारियल और आम के समूह को भेद करके सरस, विरसता को, मधुर आम के रस की विशेषता को, सुगन्धता को, हरित-श्वेत-पीतादिक वर्ण-विशेषता को, ह्रस्व-दीर्घता को, सफलता-निष्फलता आदि से युक्त कहना; रथों को, तलवर, कोतवाल आदि अठारह श्रेणी-समूह के भेद कर बलाबल को, सघनता-निर्धनता को, कुशलता-अकुशलता को, योग्यता-अयोग्यता को, कुबड़ापन व मोटापे को, कुरूपता-सुरूपता को, स्त्री-पुरूष-नपुंसक को, कर्मफल को, सदाचरण-असदाचरण को कहना, इत्यादि अनेक विषयों को भेद करके कहना विशेष-संग्रह-भेदक-व्यवहारनय है ।॥ इस प्रकार व्यवहार नय के दोनों भेदों को निरूपण हुआ ॥ |
मुख्तार :
संस्कृत नयचक्र में इस नय का स्वरूप इस प्रकार कहा है -- सामान्यसंग्रहस्यार्थे जीवाजीवादि भेवत: ।
अर्थ – जो सामान्य संग्रह के द्वारा कहे गये अर्थ को जीव-अजीव आदि के भेद से विभाजन करता है वह शुद्ध संग्रह का भेदक व्यहारनय है । इस तरह सामान्य संग्रहनय के द्वारा स्वीकृत सत्ता-सामान्य अर्थ को भेदकर जीव, पुद्गल कहना; सेना शब्द के द्वारा स्वीकृत अर्थ को भेदकर हाथी, घोड़ा, रथ, प्यादे आदि को कहना; नगर शब्द के द्वारा स्वीकृत पदार्थ का भेद कर लुहार, सुनार, कंसार, औषधिकार, मारक, जलकार, वैद्य आदि कहना; वन शबद के द्वारा स्वीकार किये गये अर्थ को भेदकर पनम आम, नारियल, सुपारी आदि वृक्षों को कहना सामान्य संग्रह का भेदक व्यवहारनय है ।
भिनत्ति व्यवहारोयं शुद्धसंग्रहभेदक: ॥सं.न.च.१/१५॥ ‘अनेन सामान्यसंग्रहनयेन स्वीकृतसत्ता सामान्यरूपार्थं भित्वा जीवपुद्गलादिकथनं, सेनाशब्दने स्वीकृतार्थ भित्वा हस्त्य अरथपदा्ति-कथनं, नगरशब्देन स्वीकृतार्थ भित्वा अयस्कार सुवर्णकारकांस्यकारौष-घिकारशाव्यकारजालकारवैद्यकारादि कथनं, वनशब्देन स्वीकृतार्थ भित्वा पनसाम्रनालिकेरपूगद्रुमादि कथनमिति सामान्यसंग्रहभेदक-वयवहारनयो भवति ॥/१४॥ |