+ सामान्‍य-संग्रहभेदक व्‍यवहार-नय -
सामान्‍यसंग्रहभेदको व्‍यवहारो यथा द्रव्‍याणि जीवाजीवा: ॥71/2॥
अन्वयार्थ : समान्‍य संग्रह-नय के विषयभूत पदार्थ में भेद करने वाला सामान्‍य संग्रहभेदक व्‍यवहारनय है । जैसे -- द्रव्‍य के दो भेद हैं, जीव और अजीव ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

संस्‍कृत नयचक्र में इस नय का स्‍वरूप इस प्रकार कहा है --

सामान्‍यसंग्रहस्‍यार्थे जीवाजीवादि भेवत: ।
भिनत्ति व्‍यवहारोयं शुद्धसंग्रहभेदक: ॥सं.न.च.१/१५॥
‘अनेन सामान्‍यसंग्रहनयेन स्‍वीकृतसत्ता सामान्‍यरूपार्थं भित्‍वा जीवपुद्गलादिकथनं, सेनाशब्‍दने स्‍वीकृतार्थ भित्‍वा हस्‍त्‍य अरथपदा्ति-कथनं, नगरशब्‍देन स्‍वीकृतार्थ भित्‍वा अयस्‍कार सुवर्णकारकांस्‍यकारौष-घिकारशाव्‍यकारजालकारवैद्यकारादि कथनं, वनशब्‍देन स्‍वीकृतार्थ भित्‍वा पनसाम्रनालिकेरपूगद्रुमादि कथनमिति सामान्‍यसंग्रहभेदक-वयवहारनयो भवति ॥/१४॥
अर्थ – जो सामान्‍य संग्रह के द्वारा कहे गये अर्थ को जीव-अजीव आदि के भेद से विभाजन करता है वह शुद्ध संग्रह का भेदक व्‍यहारनय है । इस तरह सामान्‍य संग्रहनय के द्वारा स्‍वीकृत सत्ता-सामान्‍य अर्थ को भेदकर जीव, पुद्गल कहना; सेना शब्‍द के द्वारा स्‍वीकृत अर्थ को भेदकर हाथी, घोड़ा, रथ, प्‍यादे आदि को कहना; नगर शब्‍द के द्वारा स्‍वीकृत पदार्थ का भेद कर लुहार, सुनार, कंसार, औषधिकार, मारक, जलकार, वैद्य आदि कहना; वन शबद के द्वारा स्‍वीकार किये गये अर्थ को भेदकर पनम आम, नारियल, सुपारी आदि वृक्षों को कहना सामान्‍य संग्रह का भेदक व्‍यवहारनय है ।