+ स्‍थूल ऋजुसूत्रनय -
स्‍‍थूलर्जुसूत्रो यथा मनुष्‍यादिपर्यायास्‍तदायुः प्रमाणकालं तिष्‍ठन्ति ॥75॥
अन्वयार्थ : जो नय अनेक समयवर्ती स्‍थूल-पर्याय को विषय करता है, वह स्‍थूल-ऋजुसूत्र नय है । जैसे -- मनुष्‍यादि पर्यायें अपनी-अपनी आयु प्रमाण काल तक रहती हैं ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

प्राकृत नयचक्र में स्‍थूल ऋजुसूत्र-नय का स्‍वरूप इस प्रकार कहा है --

मुणुवाइयपज्‍जाओ मणुसोति सगट्ठिदीसु वट्टंतो ।
जो भणइ तावकालं सो थूलो होइ रिवसुत्तो ॥प्रा.न.च.११२/७७॥
अर्थ – अपनी स्थिति पर्यंत रहने वाली मनुष्‍य आदि पर्याय को उसमे काल तक जो नय मनुष्‍य आदि कहता है वह स्‍थूल ऋजुसूत्र-नय है ।

संस्‍कृत नयचक्र में इस प्रकार का है -

यो नरादिकपर्यायं स्‍वकीयस्थितिवर्तनं ।
तावत्‍कालं तथा चष्‍टे स्‍थूलाख्‍यऋजुसूत्रकः ॥१९/४२॥
अर्थ – मनुष्‍यादि पर्यायें अपनी-अपनी स्थिति तक रहती हैं । उतने काल तक मनुष्‍य आदि कहना स्‍थूल ऋजुसूत्र-नय है।

नरनारकादिघटपटादिव्‍यंजनपर्यायेषु नीवपुद्गलाभिधानरूपवस्‍तूनि परणितानीति स्‍थूलऋजुसूत्रनयः (/१६) व्‍यंजनपर्यायापेक्षया प्रारम्‍भतः प्रारभ्‍य अवसान यावद्-भवतीति निश्‍चयः कर्तव्‍य इति तात्‍पर्य ॥/१७॥
अर्थ – नर-नारक आदि और घट-पट आदि व्‍यंजन पर्यायों में जीव और पुद्गल नामक पदार्थ परिणत हुए हैं । इस प्रकार का विषय स्‍थूल ऋजुसूत्र-नय का है । व्‍यंजन-पर्याय की अपेक्षा प्रारम्‍भ से अवसान तक वर्तमान पर्याय निश्‍चय करना चाहिये ।

॥ इस प्रकार ऋजुसूत्र नय के दोनों भवों का कथन हुआ ॥