+ समभिरूढ नय -
समभिरूढनयो यथा गौः पशुः ॥78॥
अन्वयार्थ : नाना अर्थों को 'सम' अर्थात् छोड़़कर प्रधानता से एक अर्थ में रूढ होता है वह समभिरूढ है । जैसे -- 'गो' शब्‍द के वचन आदि अनेक अर्थ पाये जाते हैं तथापि वह 'पशु' अर्थ में रूढ है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

समभिरूढ नय का स्‍वरूप विस्‍तारपूर्वक सूत्र ४१ की टीका में कहा जा चुका है । आगे सूत्र २०१ में भी इसका लक्षण कहेंगे ।