+ एवंभूत-नय -
एवंभूतनयो यथा इन्‍दतीति इन्‍द्रः ॥79॥
अन्वयार्थ : जिस नय में वर्तमान क्रिया ही प्रधान होती है वह एवंभूतनय है । जैसे -- जिस समय देवराज इन्‍दन क्रिया को करता है उस समय ही इस नय की दृ‍ष्टि में वह इन्‍द्र है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

सूत्र ४१ की टीका में एवंभूत नय का स्‍वरूप सविस्‍तार कहा जा चुका है । आगे सूत्र २०२ में भी इसका स्‍वरूप कहा जाएगा ।

द्रव्‍यार्थिक नय के १० भेद, पर्यायार्थिक नय के ६ भेद, नैगम नय के ३ भेद, संग्रहनय के २ भेद, व्‍यवहार नय के २ भेद, ऋजुसूत्र नय के २ भेद, शब्‍द नय, समभिरूढनय और एवंभूतनय ये तीन, इस प्रकार नय के २८ भेदों का कथन हुआ ।