+ शुद्ध-सद्भूत व्‍यवहारनय -
शुद्धसद्भूत व्‍यवहारो यथा शुद्धगुणशुद्धगुणिनोः शुद्धपर्याय-शुद्धपर्यायिणोर्भेदकथनम् ॥82॥
अन्वयार्थ : शुद्धगुण और शुद्धगुणी में तथा शुद्धपर्याय और शुद्धपर्यायी में जो नय भेद का कथन करता है वह शुद्धसद्भूत व्‍यवहारनय है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

कर्मोपाधि निरपेक्ष शुद्ध जीव गुणी और क्षायिक शुद्ध ज्ञान में तथा सिद्ध जीव व सिद्ध-पर्याय में भेद कथन करना शुद्धसद्भूत व्‍यवहारनय का विषय है ।

संस्‍कृत नयचक्र में भी इस प्रकार कहा है -

संज्ञालक्षणप्रयोजनादिभिर्भित्‍वा शुद्धद्रव्‍ये गुणगुणिविभागैक-लक्षणं कथयन् शुद्धसद्भूतव्‍यवहारोपनयः । (२१)

संज्ञा, लक्षण, प्रयोजन के द्वारा भेद करके शुद्ध द्रव्‍य में गुण और गुणों के विभाग के एक मुख्‍य-लक्षण को कहने वाला शुद्धसद्भूत व्‍यवहारनय है ।