
मुख्तार :
कर्मोपाधि निरपेक्ष शुद्ध जीव गुणी और क्षायिक शुद्ध ज्ञान में तथा सिद्ध जीव व सिद्ध-पर्याय में भेद कथन करना शुद्धसद्भूत व्यवहारनय का विषय है । संस्कृत नयचक्र में भी इस प्रकार कहा है - संज्ञालक्षणप्रयोजनादिभिर्भित्वा शुद्धद्रव्ये गुणगुणिविभागैक-लक्षणं कथयन् शुद्धसद्भूतव्यवहारोपनयः । (२१) संज्ञा, लक्षण, प्रयोजन के द्वारा भेद करके शुद्ध द्रव्य में गुण और गुणों के विभाग के एक मुख्य-लक्षण को कहने वाला शुद्धसद्भूत व्यवहारनय है । |