+ अशुद्ध-सद्भूत-व्‍यवहारनय -
अशुद्धसद्भूतव्‍यवहारो यथाऽशुद्धगुणाअशुद्धगुणिनोरशुद्ध-पर्यायाशुद्धपर्यायिणोर्भेद कथनम् ॥83॥
अन्वयार्थ : अशुद्ध-गुण और अशुद्ध-गुणी में तथा अशुद्ध-पर्याय और अशुद्ध-पर्यायी में जो नयभेद का कथन करता है वह अशुद्ध-सद्भूत-व्‍यवहारनय है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

संज्ञालक्षणप्रयोजनादिभिर्भित्त्वा अशुद्धद्रव्‍ये गुणगुणि-विभागैकलक्षणं कथयन् अशुद्धसद्भूतव्‍यवहारोपनयः । (सं.न.च.२१)

अर्थ – संज्ञा, लक्षण, प्रयोजन के द्वारा भेद करके अशुद्ध द्रव्‍य में गुण और गुणी और गुणी के विभाग रूप मुख्‍य लक्षण को कहने वाला अशुद्ध-सद्भूतव्‍यवहार-नय है ।

॥ इस प्रकार सद्भूत-व्‍यवहारनय के दोनों भेदों का कथन हुआ ॥