+ विजात्‍युपचरित-असद्भूत-व्‍यवहार उपनय -
विजात्‍युपचरितासद्भूतव्‍यवहारो यथा वस्‍त्राभरणहेमरत्‍नादिमम ॥90॥
अन्वयार्थ : वस्‍त्र, आभूषण, स्‍वर्ण, रत्‍नादि मेरे हैं ऐसा कहना विजात्‍युपचरित-असद्भूत-व्‍यवहार उपनय है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

सोना, चाँदी आदि अपनी जाति के द्रव्‍य नहीं हैं, अत: विजातीय द्रव्‍य हैं । आत्‍मरूप नहीं हैं अत: असद्भूत हैं । तथापि लोकोपचार में यथार्थ स्‍वामिपना पाया जाता है । संस्‍कृत नयचक्र में कहा भी है --

हेमाभरणवस्‍त्रादि ममेदं यो हि भाषते ।
उपचाराद्सद्भूतो विद्वद्धि: परिभाषित: ॥सं.न.च.३/४८॥
अर्थ – 'सोना, आभरण वस्‍त्र आदि मेरे हैं' जो नय ऐसा कहता हैं, विद्वज्‍जनों ने उस नय को विजात्‍युपचरितासद्भूतव्‍यवहार नय कहा है ।

प्राकृत नयचक्र/१७ पर भी इसी प्रकार कहा है --

आहरणहेमरयण वत्‍था‍दीया ममत्ति जंपंतो ।
उवयारश्रसब्‍भूओ विजादिदव्‍वेसु णायव्‍वो ॥प्रा.न.च.७४॥
'आभरण, सोना, वस्‍त्रादि मेरे हैं' ऐसा कहना विजात्‍युपचरितासद्भूत-व्‍यवहार-उपनय जानना चाहिए । सूत्र ८८ व २१३ में इसका विशेष कथन है ।