
मुख्तार :
यहाँ पर मिश्र द्रव्य का स्वामिपना बतलाया गया है, क्योंकि देशादिक में सचेतन और अचेत न दोनों ही प्रकार के पदार्थों का समावेश रहता है । 'मैं' की अपेक्षा से देशादिक में रहने वाले सचेतन पदार्थ स्वजातीय हैं और अचेतन पदार्थ विजातीय हैं । अत: 'यह देश अथवा राज्य मेरा है' ऐसा ग्रहण करना स्वजातिविजात्युपचरित-असद्भूत-व्यवहारनय है । यहाँ पर सचेतन-अचेतन-मिश्र पदार्थ को अभेदरूप से ग्रहण किया गया है । देशं दुर्ग च राज्यं च गृहातीह् ममेति य: ।
अर्थ – जो नय देश, दुर्ग, राज्य आदि को ग्रहण करता है वह नय चेतना-चेतन मिश्र पृथक् पदार्थ को अपने बतलाता है । वह स्वजातिविजात्युपचरिता-सद्भूत व्यवहार उपनय है ।उभयार्थोपचारत्वाद्सद्भूतोपचारक: ॥४ सं.न.च./४८॥ देसं च रज्ज दुग्गं एवं जो चेव भणइ मम सव्वं ।
अर्थ – देश, राज्य, दुर्ग से सब मेरे हैं ऐसा जो नय कहता है वह स्वजाति-विजात्युपचरितासद्भूतव्यवहार उपनय है ।उहयत्थे उपयरिओ होइ असब्भूयवहारो ॥७५ प्रा.न.च.१७॥ ॥ उपचरित-असद्भूत-व्यवहार उपनय के तीनों भेदों का कथन हुआ ॥ |