+ गुण-पर्याय में अंतर -
सहभुवो गुणा:, क्रमवर्तिन: पर्याया: ॥92॥
अन्वयार्थ : साथ में होने वाले गुण हैं और क्रम-क्रम से होने वाली पर्यायें हैं । अर्थात् अन्‍वयी गुण हैं और व्‍यतिरेक परिणाम पर्यायें हैं ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

संस्‍कृत नयचक्र में कहा है --

सहभुवो गुणा: । क्रमभाविन: पर्याया: ॥सं.न.च.५७॥
अर्थ – साथ में होने वाला गुण है और कमवर्ती पर्यायें हैं ।

ऐसा नहीं है कि द्रव्‍य पहले हो और बाद में गुणों से सम्‍बन्‍ध हुआ हो । किन्‍तु द्रव्‍य और गुण अनादि काल से हैं इनका कभी भी विच्‍छेद नहीं होता है अत: गुण का लक्षण 'सहभुव:' कहा है। अथवा जो निरन्‍तर द्रव्‍य में रहते हैं और अन्‍य गुण से रहित हैं वे गुण हैं । (मो.शा.५/४)

विशेष गुण का लक्षण --