
मुख्तार :
संस्कृत नयचक्र में कहा है -- सहभुवो गुणा: । क्रमभाविन: पर्याया: ॥सं.न.च.५७॥
अर्थ – साथ में होने वाला गुण है और कमवर्ती पर्यायें हैं ।ऐसा नहीं है कि द्रव्य पहले हो और बाद में गुणों से सम्बन्ध हुआ हो । किन्तु द्रव्य और गुण अनादि काल से हैं इनका कभी भी विच्छेद नहीं होता है अत: गुण का लक्षण 'सहभुव:' कहा है। अथवा जो निरन्तर द्रव्य में रहते हैं और अन्य गुण से रहित हैं वे गुण हैं । (मो.शा.५/४) विशेष गुण का लक्षण -- |