+ गुण -
गुण्‍यते पृथक्क्रियते द्रव्‍यं द्रव्‍याद्यैस्‍तेगुणा: ॥93॥
अन्वयार्थ : जिनके द्वारा एक द्रव्‍य दूसरे द्रव्‍य से पृथक् किया जाता है, वे (विशेष) गुण कहलाते हैं ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

संस्‍कृत नयचक्र में कहा है --

गुणव्‍युत्‍पत्तिर्गुण्‍यते पृथक् क्रियते द्रव्‍याद्द्रव्‍यं येनासौ विशेष-गुण: ॥सं.न.च.५८॥
अर्थ – जिसके द्वारा एक द्रव्‍य दूसरे द्रव्‍य से पृथक् किया जाता है वह विशेषगुण है, यह गुण का व्‍युत्‍पत्ति अर्थ है ।

सामान्‍यगुण और विशेषगुण के भेद से गुण दो प्रकार के हैं । सामान्‍य-गुण सब द्रव्‍यों में पाये जाते हैं । उन सामान्‍यगुणों के द्वारा तो एक द्रव्‍य दूसरे द्रव्‍य से पृथक् नहीं किया जा सकता, विशेषगुणों के द्वारा ही एक द्रव्‍य दूसरे द्रव्‍य से पृथक् किया जा सकता है, अत: गुण का यह व्‍य‍ुत्‍पत्ति अर्थ विशेष गुण में ही घटित होता है और 'सहभुवो गुणा:' अथवा 'द्रव्‍याश्रया निर्गुणा गुणा: ॥त.सू.२/४१॥' ये दोनों लक्षण सब गुणों में घटित होते हैं ।