
मुख्तार :
संस्कृत नयचक्र में कहा है -- गुणव्युत्पत्तिर्गुण्यते पृथक् क्रियते द्रव्याद्द्रव्यं येनासौ विशेष-गुण: ॥सं.न.च.५८॥
अर्थ – जिसके द्वारा एक द्रव्य दूसरे द्रव्य से पृथक् किया जाता है वह विशेषगुण है, यह गुण का व्युत्पत्ति अर्थ है ।सामान्यगुण और विशेषगुण के भेद से गुण दो प्रकार के हैं । सामान्य-गुण सब द्रव्यों में पाये जाते हैं । उन सामान्यगुणों के द्वारा तो एक द्रव्य दूसरे द्रव्य से पृथक् नहीं किया जा सकता, विशेषगुणों के द्वारा ही एक द्रव्य दूसरे द्रव्य से पृथक् किया जा सकता है, अत: गुण का यह व्युत्पत्ति अर्थ विशेष गुण में ही घटित होता है और 'सहभुवो गुणा:' अथवा 'द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणा: ॥त.सू.२/४१॥' ये दोनों लक्षण सब गुणों में घटित होते हैं । |