
मुख्तार :
संस्कृत नयचक्र में कहा है -- अस्तित्वस्य भावोऽस्तित्वं । सीदति स्वकीयान गुणपर्यायान् व्यापनोतीति सत् ॥सं.न.च॥
अर्थ – अस्तित्व का भाव अस्तित्व है । अपने गुण और पर्याय में व्याप्त होने वाला सत् है ।अस्तित्व गुण का विशेष कथन सूत्र ९ की टीका में किया जा चुका है । |