+ वस्‍तुत्‍व गुण -
वस्‍तुनोभावो वस्‍तुत्‍वम्, सामान्‍यविशेषात्‍मकं वस्‍तु ॥95॥
अन्वयार्थ : सामान्‍य-विशेषात्‍मक वस्‍तु होती है । उस वस्‍तु का जो भाव वह वस्‍तुत्‍व है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

यही लक्षण संस्‍कृत नयचक्र में कहा गया है ।

परीक्षामुख चतुर्थ अध्‍याय में वस्‍तु का तथा सामान्‍य व विशेष का लक्षण निम्‍न प्रकार कहा गया है --

सामान्‍यविशेषात्‍मा तदर्थो विषय: ॥१॥ सामान्‍यं द्वेघा तिर्यग्-र्ध्‍वताभेदात् ॥३॥ सद्दशपरिणामस्तिर्यक्, खण्‍डमुण्‍डादिषु गोत्‍ववत् ॥४॥ परापरविवर्तव्‍यापि द्रव्‍यमूर्ध्‍वता मृदिव स्थासादिषु ॥५॥ विशेषश्‍च ॥६॥ पर्याय व्‍यतिरेकभेदात् ॥७॥ एकस्मिन् द्रव्‍ये क्रमभाविन: परिणामा: पर्याया आत्‍मनि हर्षविषादा्दिवत् ॥८॥ अर्थान्‍तरगतो विसद्दशपरिणामो व्‍यतिरेको गोमहिषादिवत् ॥९॥
अर्थ – सामान्‍य-विशेषात्‍मक पदार्थ प्रमाण का विषय है ॥१॥ तिर्यक्-सामान्‍य और ऊर्ध्‍वता-सामान्‍य के भेद से सामान्‍य दो प्रकार का है ॥३॥ सद्दश अर्थात् सामान्‍य परिणाम को तिर्यक् सामान्‍य कहते हैं, जैसे -- खण्‍डी, मुण्‍डी आदि गायों में गोपना समान रूप से रहता है ॥४॥ पूर्व और उत्तर पर्यायों में रहने वाले द्रव्‍य को ऊर्ध्‍वता-सामान्‍य कहते हैं । जैसे -- स्‍थास, कोश, कुशूल आदि घट की पर्यायों में मिट्टी रहती है ॥५॥ विशेष भी दो प्रकार का है, पर्याय, व्‍यतिरेक के भेद से ॥६–७॥ एक द्रव्‍य में क्रम से होने वाले परिणाम को पर्याय कहते है । जैसे -- आत्‍मा में हर्ष, विषाद आदि परिणाम क्रम से होते हैं, वे ही पर्याय हैं ॥८॥ एक पदार्थ की अपेक्षा अन्य पदार्थ में रहने वाले विसद्दश परिणाम को व्‍यतिरेक कहते है । जैसे -- गाय, भैंस आदि में विलक्षणपना पाया जाता है ॥९॥