पं-रत्नचन्द-मुख्तार
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अचेतनत्व
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अचेतनस्य भावेऽचेतनत्वमचैतन्यमननुभवनम् ॥102॥
अन्वयार्थ :
अचेतन के मात्र को अर्थात् पदार्थों के अननुभवन को अचेतनत्व कहते हैं ।
मुख्तार
मुख्तार :
जीव के अतिरिक्त पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये पांचों द्रव्य अचेतन है, जड़ हैं, क्योंकि इनमें जानने की शक्ति अर्थात् अनुभवन का अभाव है ।