+ अस्ति-स्‍वभाव -
स्‍वभावलाभादच्‍युतत्‍वादस्तिस्‍वभावः ॥106॥
अन्वयार्थ : जिस द्रव्‍य को जो स्‍वभाव प्राप्‍त है उससे कभी भी च्‍युत नहीं होना अस्ति-स्‍वभाव है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

जीव का चेतन स्‍वभाव है । चेतन स्‍वभाव से कभी च्‍युत नहीं होना जीव का अस्ति-स्‍वभाव है । यदि जीव चेतन-स्‍वभाव से च्‍युत हो जावे तो जीव का अस्तित्‍व ही समाप्‍त हो जावेगा ।

स्‍व का होना या स्‍व के द्वारा होना स्‍वभाव है । लाभ का अर्थ व्‍याप्ति है ।