+ नित्‍य-स्‍वभाव -
निज-निज-नानापर्यायेषु तदेवेदमिति द्रव्‍यस्‍योपलम्‍भान्नित्‍यस्‍वभाव: ॥108॥
अन्वयार्थ : अपनी अपनी नाना पर्यायों में 'यह वही है' इस प्रकार द्रव्‍य की प्राप्ति 'नित्‍य-स्‍वभाव' है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

ध्रुवत्‍व अंश की अपेक्षा से अथवा सामान्‍य अंश की अपेक्षा से द्रव्‍य नित्‍य स्‍वभावी है जो द्रव्‍यार्थिक नय का विषय है । अर्थात् द्रव्‍यार्थिक नय की अपेक्षा द्रव्‍य नित्य है ।