+ अनेक-स्‍वभाव -
एकस्‍याप्‍यनेकस्‍वभावोपलम्‍भादनेक स्‍वभाव: ॥111॥
अन्वयार्थ : एक ही द्रव्‍य के अनेक स्‍वभावों की उपलब्धि होने से अनेक-स्‍वभाव है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

एक ही द्रव्‍य गुणों, पर्यायों और स्‍वभावों का आधार है । यद्यपि आधार एक है किन्‍तु आधेय अनेक हैं । अत: आधेय की अपेक्षा से अथवा विशेषों की अपेक्षा से द्रव्‍य अनेक स्‍वभावी है ।

स्‍यादनेक इति विशेषरूपेणैव कुर्यात् ॥सं.न.च.६५॥
अर्थ – विशेष की अपेक्षा अनेक स्‍वभाव है ।