
मुख्तार :
निश्चयनय अर्थात् द्रव्यार्थिक नय की दृष्टि में एक अखण्ड द्रव्य है उसमें गुणों की कल्पना नहीं है । समयसार गाथा ७ में श्री कुंदकुंद आचार्य ने कहा है कि व्यवहारनय से जीव में दर्शन, ज्ञान, चारित्र है किन्तु निश्चयनय से न दर्शन है, न ज्ञान है, न चारित्र है । द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा जीव में दर्शन, ज्ञान, चारित्र ऐसा भेद नहीं है । स्यादभेद इति द्रव्यार्थिकेनैव कुर्यात् ॥सं.न.च.६५॥
अर्थ – द्रव्यार्थिक नय से ही अभेद स्वभाव है ।गुणपज्जयदो दव्वं दव्वादो ण गुणपज्जर्याभण्णा ।
अर्थ – गुण, पर्याय से द्रव्य और द्रव्य से गुण, पर्याय भिन्न नहीं हैं अर्थात् प्रदेशभेद नहीं है इस लिए गुण, पर्याय से द्रव्य को अनन्य कहा है अर्थात् गुण गुणी में अभेद स्वभाव कहा है ।
जद्या तह्या भणियं दव्व गुणपज्जयनणण्णं ॥प्रा.न.च.४२॥ |