
मुख्तार :
अनादि काल से छहों द्रव्य एक क्षेत्रावगाह हो रहे हैं किन्तु किसी द्रव्य के एक प्रदेश का भी अन्य द्रव्यरूप परिणमन नहीं हुआ । अण्णोण्णं पविसंता दिंता ओगासमण्णमण्णस्स ।
अर्थ – वे द्रव्य एक-दूसरे में प्रवेश करते हैं, अन्योन्य को अवकाश देते हैं, परस्पर मिल जाते हैं तथापि सदा अपने-अपने स्वभाव को नहीं छोड़ते । मेलंता वि य णिच्चं सगं सभावं ण विजहंति ॥प.का.७॥ विशेषार्थ – जीव और पुद्गल परस्पर एक-दूसरे में प्रवेश करते हैं तथा शेष धर्मादि चार द्रव्य कियावान् जीव और पुद्गलों को अवकाश देते हैं तथा धर्मादि निष्क्रिय चार द्रव्य एक क्षेत्र में परस्पर मिलकर रहते हैं तथापि कोई भी द्रव्य अपने स्वभाव को नहीं छोड़ता । |