पं-रत्नचन्द-मुख्तार
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परम-स्वभाव
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पारिणामिकभावप्रधानत्वेन परमस्वभाव: ॥116॥
अन्वयार्थ :
पारिणामिक भाव की प्रधानता से परमस्वभाव है ।
मुख्तार
मुख्तार :
अपने स्वभाव से रहना या होना पारिणामिक भाव है । उस पारिणामिक भाव की मुख्यता से परम-स्वभाव है ।
॥ इस प्रकार से सामान्य स्वभावों का निरूपण हुआ ॥