+ गुण स्‍वभाव हैं -
स्‍वद्रव्‍यचतुष्‍टयापेक्षया परस्‍परं गुणा: स्‍वभावा भवन्ति ॥119॥
अन्वयार्थ : स्‍वद्रव्‍य चतुष्‍टय अर्थात् स्‍व-द्रव्‍य, स्‍व-क्षेत्र, स्‍व-काल और स्‍व-भाव की अपेक्षा परस्‍पर में गुण स्‍वभाव हो जाते हैं ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

अस्तित्‍व द्रव्‍य का गुण है । इस गुण चतुष्‍टय और द्रव्‍य का चतुष्‍टय एक है । इस अस्तित्‍व गुण के कारण ही द्रव्‍य व अन्‍य गुणों का अस्तित्‍व है । अत: यह अस्तित्‍व गुण स्‍वभाव भी हो जाता है । इसी प्रकार अन्‍य गुणों के विषय में भी यथायोग्‍य ज्ञान लेना चाहिये ।