पं-रत्नचन्द-मुख्तार
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विभाव
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स्वभावादन्यथाभवनं विभाव: ॥121॥
अन्वयार्थ :
स्वभाव से अन्यथा होने को, विपरीत होने को विभाव कहते हैं ।
मुख्तार
मुख्तार :
जीव का स्वभाव क्षमा है । क्षमा से विपरीत क्रोध रूप होना विभाव है ।