+ विभाव -
स्‍वभावादन्‍यथाभवनं विभाव: ॥121॥
अन्वयार्थ : स्‍वभाव से अन्‍यथा होने को, विपरीत होने को विभाव कहते हैं ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

जीव का स्‍वभाव क्षमा है । क्षमा से विपरीत क्रोध रूप होना विभाव है ।