
मुख्तार :
जो द्रव्य अबद्ध है अर्थात् दूसरे द्रव्यों से बंधा हुआ नहीं है, वह द्रव्य शुद्ध है और उसके जो भाव हैं वे भी शुद्ध हैं । किन्तु जो द्रव्य अन्य द्रव्यों से बंधा हुआ है वह अशुद्ध है । उस अशुद्ध द्रव्य के जो भाव हैं वे भी अशुद्ध हैं । क्योंकि 'उपादानकारण सद्दशं कार्य भवतीति' अर्थात् उपादान कारण के सदृश ही कार्य होता है । इसी बात को श्री कुंदकुंद आचार्य दृष्टांत द्वारा बतलाते हैं । कणयमया भावादो जायंते कुण्डलाद्यो भावा ।
अर्थ – सुवर्णमय द्रव्य से सुवार्णमय कुंडलादि भाव होते हैं और लोहमय द्रव्य से लोहमयी कड़े इत्यादिक भाव होते हैं ।
अयमयया आवादो जह जायंते तु कडयादी ॥स.सा.९०॥ |