+ उपचरित-स्‍वभाव -
स्वभावस्याप्यन्यत्रोपचारादुपचरितस्वभाव: ॥123॥
अन्वयार्थ : स्‍वभाव का भी अन्‍यत्र उपचार करना उपचरित-स्‍वभाव है ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

एकेन्द्रिय जीव, द्वीन्द्रिय जीव तथा पर्याप्‍त जीव, अपर्याप्‍त जीव इत्‍यादि कहना उपचरित-स्‍वभाव हैं, क्‍योंकि ये भाव पुद्गलमयी नाम-कर्म की प्रकृतियों के हैं ।