पं-रत्नचन्द-मुख्तार
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उपचरित-स्वभाव
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स्वभावस्याप्यन्यत्रोपचारादुपचरितस्वभाव: ॥123॥
अन्वयार्थ :
स्वभाव का भी अन्यत्र उपचार करना उपचरित-स्वभाव है ।
मुख्तार
मुख्तार :
एकेन्द्रिय जीव, द्वीन्द्रिय जीव तथा पर्याप्त जीव, अपर्याप्त जीव इत्यादि कहना उपचरित-स्वभाव हैं, क्योंकि ये भाव पुद्गलमयी नाम-कर्म की प्रकृतियों के हैं ।