+ सर्वथा अनित्‍य मानने में दोष -
अनित्यपक्षेऽपि निरन्वयत्वादर्थक्रियाकारित्वाभावः । अर्थक्रियाकारित्वाभावे द्रव्यस्याप्यभावः ॥130॥
अन्वयार्थ : सर्वथा अनित्‍य पक्ष में भी निरन्‍वय अर्थात् निर्द्रव्‍यत्‍व होने से अर्थक्रियाकारित्‍व का अभाव हो जायेगा और अर्थक्रियाकारित्‍व का अभाव होने से द्रव्‍य का भी अभाव हो जायगा ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

पर्याय अनित्‍य है और द्रव्‍य नित्‍य है । सर्वथा अनित्‍य मानने पर नित्‍यता के अभाव का प्रसंग आ जायगा अर्थात् पर्यायों में अन्‍वयरूप से रहने वाले द्रव्‍य का अभाव हो जायगा । और अन्‍वयरूप द्रव्‍य के अभाव में पर्यायों का भी अभाव हो जायगा ।