
मुख्तार :
सूत्र ९५ में सामान्य और विशेषात्मक वस्तु बतलाई है । विशेष का अर्थ पर्याय है । जैसे -- शवक, छत्रक, स्याश, कोश, कुशूल, घट आदि पर्यायें । इन पर्यायों में अन्वयरूप से रहने वाला द्रव्य 'सामान्य' है । जैसे -- शवक आदि पर्यायों में रहने वाली मिट्टी । द्रव्य बिना पर्याय नहीं होती और पर्याय बिना द्रव्य नहीं होता । श्री कुंदकुंद आचार्य ने कहा भी है -- पज्जयविजुदं दव्वं दव्वविजुत्ता य पज्जया णत्थि ।
अर्थ – पर्याय (विशेष) से रहित द्रव्य (सामान्य) और द्रव्य (सामान्य) से रहित पर्यायें (विशेष) नहीं होतीं । दोनों का अनन्यपना है, ऐसा श्रमण प्ररूपित्त करते हैं ।दोण्हं अणण्णभूदं भावं समणा परूर्वित्ति ॥पं.का.९२॥ अतः सर्वथा एकान्त से सामान्य मानने पर विशेष का अभाव हो जाने पर सामान्य का भी अभाव हो जायगा क्योंकि दोनों के अनन्यपना है । निर्विशेषं हि सामान्यं भवेत् खरविषाणवत् ।
अर्थ – विशेष रहित सामान्य निश्चय से गधे के सींग के समान है और सामान्य से रहित होने के कारण विशेष भी गधे के सींग के समान है अर्थात् अवस्तु है । ऐसा जानना चाहिये ।
सामान्यरहित्वाच्च विशेषस्तद्वदेव हि इति ज्ञेयः ॥९॥ |