+ सर्वथा अनेक में दोष -
अनेकपक्षेऽपि तथा द्रव्याभावः निराधारत्वात्‌ आधाराधेयाभावाच्च ॥132॥
अन्वयार्थ : सर्वथा अनेक पक्ष में भी पदार्थों (पर्यायों) का निराधार होने से तथा आधार-आधेय का अभाव होने से द्रव्‍य का अभाव हो जायेगा ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

सामान्‍य आधार है और विशेष (पर्यायें) आधेय हैं । यदि केवल विशेषरूप अर्थात् अनेकरूप ही माना जाय तो विशेष (पर्यायों) का आधार जो सामान्‍य, उसका अभाव हो जाने से विशेष निराधार रह जायेंगे और आधार-आधेय सम्‍बन्‍ध का भी अभाव हो जायेगा । सामान्‍य रूप आधार के अभाव में विशेषरूप आधेयों का भी अभाव हो जायेगा । इस प्रकार द्रव्‍य का भी अभाव हो जायेगा ।