
मुख्तार :
गुण और गुणी का सर्वथा भेद मानने पर तथा पर्याय और पर्यायी का सर्वथा भेद मानने पर अर्थात् प्रदेश अपेक्षा भी भेद मानने पर गुण और गुणी दोनों की भिन्न-भिन्न सत्ता हो जायगी तथा पर्याय और पर्यायी की भी भिन्न-भिन्न सत्ता हो जायेगी । भिन्न-भिन्न सत्ता हो जाने से गुण और पर्याय निराधार हो जायेंगे अर्थात् द्रव्य के आधार नहीं रहेंगे । गुण और पर्यायरूप विशेष स्वभावों के निराधार हो जाने से अर्थक्रियाकारित्व का अभाव हो जायेगा । अर्थक्रियाकारित्व का अभाव हो जाने से द्रव्य का भी अभाव हो जायेगा । श्री अमृतचन्द्राचार्य ने कहा भी है -- न खलु द्रव्यात्पृथग्भूतो गुण इति वा पर्याय इति वा कश्चिदपि स्यात् । यथा सुवर्णात्पृथग्भूतं तत्पीतत्वादिकमिति वा तत्कुण्डलादिकत्वमिति वा । (प्र.सा.११०.टी) अर्थ – निश्चय नय से द्रव्य से पृथग्भूत कोई भी गुण या पर्याय नहीं होती । जैसे -- सुवर्ण का पीलापन गुण तथा कुण्डलादि पर्यायें सुवर्ण से पृथग्भूत नहीं होतीं । |