
मुख्तार :
प्रवचनसार टीका में जयसेन आचार्य ने कहा है - यदि पुरनेकान्तेन ज्ञानमात्मेति भण्यते तद । ज्ञानगुणमात्र एवात्मा प्राप्तः सुखादिघर्माणामवकाशो नास्ति । तथा सुखवीर्यादि-धर्मसमूहाभावादात्माऽभावः आत्मन आधारभूतस्याभावादाधेय-भूतस्य ज्ञानगुणस्याप्यभावः, इत्येकान्ते सति द्वयोरप्यभावः ॥प्र.सा.२७.टी॥
अर्थ – यदि एकान्त से ज्ञान ही आत्मा है, ऐसा कहा जाय तब ज्ञानगुण मात्र ही आत्मा प्राप्त होगा, फिर सुख आदि स्वभावों का अवकाश नहीं रहेगा तथा सुख, वीर्य आदि स्वभावों के समुदाय का अभाव होने से आत्मा का अभाव हो जायेगा । जब आधारभूत आत्मा का अभाव हो गया, तब उसका आघेयभूत ज्ञानगुण का भी अभाव हो गया । इस तरह अभेद एकान्त मत में ज्ञानगुण और आत्म-द्रव्य दोनों का ही अभाव हो जायगा ।
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