+ सर्वथा अभेद में दोष -
अभेदपक्षेऽपि (सर्वथा) सर्वेषामेकत्वम्‌ । सर्वेषामेकत्वेऽर्थक्रियाकारित्वाभावः । अर्थक्रियाकारित्वाभावे द्रव्यस्याप्यभावः ॥134॥
अन्वयार्थ : सर्वथा अभेद पक्ष में गुण-गुणी, पर्याय-पर्यायी सम्‍पूर्ण पदार्थ एकरूप हो जायेंगे । सम्‍पूर्ण पदार्थों के एकरूप हो जाने पर अर्थक्रियाकारित्‍व का अभाव हो जायगा और अर्थक्रियाकारित्‍व के अभाव में द्रव्‍य का भी अभाव हो जायगा ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

प्रवचनसार टीका में जयसेन आचार्य ने कहा है -

यदि पुरनेकान्‍तेन ज्ञानमात्‍मेति भण्‍यते तद । ज्ञानगुणमात्र एवात्‍मा प्राप्‍तः सुखादिघर्माणामवकाशो नास्ति । तथा सुखवीर्यादि-धर्मसमूहाभावादात्‍माऽभावः आत्‍मन आधारभूतस्‍याभावादाधेय-भूतस्‍य ज्ञानगुणस्‍याप्‍यभावः, इत्‍येकान्‍ते सति द्वयोरप्‍यभावः ॥प्र.सा.२७.टी॥
अर्थ – यदि एकान्‍त से ज्ञान ही आत्‍मा है, ऐसा कहा जाय तब ज्ञानगुण मात्र ही आत्‍मा प्राप्‍त होगा, फिर सुख आदि स्‍वभावों का अवकाश नहीं रहेगा तथा सुख, वीर्य आदि स्‍वभावों के समुदाय का अभाव होने से आत्‍मा का अभाव हो जायेगा । जब आधारभूत आत्‍मा का अभाव हो गया, तब उसका आघेयभूत ज्ञानगुण का भी अभाव हो गया । इस तरह अभेद एकान्‍त मत में ज्ञानगुण और आत्‍म-द्रव्‍य दोनों का ही अभाव हो जायगा ।