
मुख्तार :
द्रव्य परिणामी है, यदि उसमें एकान्त से भव्य स्वभाव ही माना जाय, अभव्य स्वभाव स्वीकार न किया जाय तो द्रव्य द्रव्यांतररूप भी परिणमन कर जायगा, जिससे संकरादि आठ दोष आ जायेंगे । संकर आदि आठ दोषों का कथन सूत्र १२७ के विशेषार्थ में किया जा चुका है । |