+ सर्वथा भव्‍य में दोष -
भव्यस्यैकान्तेन पारिणामिकत्वाद्द्रव्यस्य द्रव्यान्तरत्वप्रसंगात्‌ । संकरादिदोषप्रसंगात्‌ ॥135॥
अन्वयार्थ : एकान्‍त से सर्वथा भव्‍य स्‍वभाव के मानने पर द्रव्‍य के द्रव्‍यान्‍तर का प्रसंग आ जायगा, क्‍योंकि द्रव्‍य परिणामी होने के कारण पर-द्रव्‍यरूप भी परिणाम जायगा । इस प्रकार संकर आदि दोष सम्‍भव हैं ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

द्रव्‍य परिणामी है, यदि उसमें एकान्‍त से भव्‍य स्‍वभाव ही माना जाय, अभव्‍य स्‍वभाव स्‍वीकार न किया जाय तो द्रव्‍य द्रव्‍यांतररूप भी परिणमन कर जायगा, जिससे संकरादि आठ दोष आ जायेंगे । संकर आदि आठ दोषों का कथन सूत्र १२७ के विशेषार्थ में किया जा चुका है ।