+ सर्वथा अभव्‍य में दोष -
सर्वथाऽभव्यस्यैकान्तेऽपि तथा शून्यताप्रसंगात्‌, स्वरूपेणाप्यभवनात्‌ ॥136॥
अन्वयार्थ : यदि सर्वथा अभव्‍यस्‍वभाव माना जाय तो द्रव्‍य स्‍वस्‍वरूप से भी अर्थात् अपनी भाविपर्यायरूप भी नहीं हो सकेगा । जिससे द्रव्‍य का ही अभाव हो जायगा । तथा द्रव्‍य के अभाव में सर्व शून्‍य हो जायगा ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

यदि सर्वथा अभव्‍य-स्‍वभाव माना जाय तो द्रव्‍य स्‍व-स्‍वरूप से भी अर्थात् अपनी भावि-पर्यायरूप भी नहीं हो सकेगा । जिससे द्रव्‍य का ही अभाव हो जायगा । तथा द्रव्‍य के अभाव में सर्व शून्‍य हो जायगा ।