पं-रत्नचन्द-मुख्तार
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सर्वथा स्वभाव में दोष
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स्वभावस्वरूपस्यैकान्तेन संसाराभावः ॥137॥
अन्वयार्थ :
एकान्त से सर्वथा स्वभावस्वरूप माना जाय तो संसार का ही अभाव हो जायगा ।
मुख्तार
मुख्तार :
संसार विभाव-स्वरूप है । स्वभाव के एकान्त-पक्ष में विभाव को अवकाश नहीं । अतः विभाव-निरपेक्ष सर्वथा स्वभाव के मानने पर संसार का अभाव हो जायगा ।