पं-रत्नचन्द-मुख्तार
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सर्वथा विभाव में दोष
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विभावपक्षेऽपि मोक्षस्याप्यभावः ॥138॥
अन्वयार्थ :
स्वभाव निरपेक्ष विभाव के मानने पर मोक्ष का भी अभाव हो जायगा ।
मुख्तार
मुख्तार :
स्वभावरूप परिणमन मोक्ष है । एकान्त से सर्वथा विभाव स्वरूप मानने पर स्वभाव का अभाव हो जायगा । स्वभाव के अभाव में मोक्ष का भी अभाव हो जायगा ।