
मुख्तार :
यदि सर्वथा चैतन्यपक्ष माना जाय तो ज्ञानावरण कर्मोदय जनित अज्ञान का अभाव होने से सम्पूर्ण जीवों के शुद्ध-ज्ञानरूप चैतन्य होने का प्रसंग आ जायगा । शुद्ध-ज्ञानरूप चैतन्य की प्राप्ति का प्रसंग आ जाने से ध्यान, ध्येय आदि का अभाव हो जायगा, क्योंकि शुद्ध-ज्ञानरूप चैतन्य के अभाव में उसकी प्राप्ति के लिये ही ध्यान की आवश्यकता होती है । |