+ सर्वथा चैतन्‍य में दोष -
सर्वथा चैतन्यमेवेत्युक्तेऽपि सर्वेषां शुद्धज्ञानचैतन्यावाप्तिः स्यात्‌ तथा सति ध्यानं ध्येयं, गुरुशिष्याद्यभावः ॥139॥
अन्वयार्थ : सर्वथा चैतन्‍य पक्ष के मानने से सब जीवों के शुद्ध-ज्ञानरूप चैतन्‍य की प्राप्ति हो जायेगी । शुद्धज्ञानरूप चैतन्‍य की प्राप्ति हो जाने पर ध्‍यान, ध्‍येय, ज्ञान, ज्ञेय, गुरू, शिष्‍य आदि का अभाव हो जायगा ।

  मुख्तार 

मुख्तार :

यदि सर्वथा चैतन्‍यपक्ष माना जाय तो ज्ञानावरण कर्मोदय जनित अज्ञान का अभाव होने से सम्‍पूर्ण जीवों के शुद्ध-ज्ञानरूप चैतन्‍य होने का प्रसंग आ जायगा । शुद्ध-ज्ञानरूप चैतन्‍य की प्राप्ति का प्रसंग आ जाने से ध्‍यान, ध्‍येय आदि का अभाव हो जायगा, क्‍योंकि शुद्ध-ज्ञानरूप चैतन्‍य के अभाव में उसकी प्राप्ति के लिये ही ध्‍यान की आवश्‍यकता होती है ।